सोनपुर मेले का इतिहास
सोनपुर मेले की शुरूआत कब से हुई इस बारे में ठीक से नहीं कहा जा सकता। इस मेले का आयोजन प्राचीनकाल से हो रहा है। इस मेले में लगभग 2500 वर्ष पहले से लोग पशुओं की खरीद-बिक्री करने और अदला-बदली करने के लिए आते थे। वे अपनी जरूरत के मुताबिक पशुओं को लेकर यहाँ से जाते थे। आदिकाल में महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य इस मेले से हाथी और घोड़े खरीद कर ले जाया करते थे। युद्ध में लड़ने वाले ये सभी बेहद दमदार हाथी और घोड़े हुआ करते थे, जिन्होने इतिहास में पहली बार मौर्य सम्राट को पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी विजय पताका लहराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
मेले के प्रारंभ होने की तिथि, चन्द्र तिथि के अनुसार तय होती है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा (नवंबर-दिसंबर) में लगने वाला यह मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। यह मेला भले ही पशु मेला के नाम से विख्यात है, लेकिन इस मेले की खासियत यह है कि यहां सूई से लेकर हाथी तक की खरीदारी आप कर सकते हैं।
इससे भी बड़ी बात यह कि मॉल कल्चर के इस दौर में बदलते वक्त के साथ इस मेले के स्वरूप और रंग-ढंग में बदलाव जरूर आया है लेकिन इसकी सार्थकता आज भी बनी हुई है।
5-6 किलोमीटर के वृहद क्षेत्रफल में फैला यह मेला हरिहरक्षेत्र मेला और छत्तर मेला मेला के नाम से भी जाना जाता है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के साथ यह मेला शुरू हो जाता है और एक महीने तक चलता है। यहां मेले से जुड़े तमाम आयोजन होते हैं।
इस मेले में कभी अफगान, इरान, इराक जैसे देशों के लोग पशुओं की खरीदारी करने आया करते थे। कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने भी इसी मेले से बैल, घोड़े, हाथी और हथियारों की खरीदारी की थी।
1857 की लड़ाई के लिए बाबू वीर कुंवर सिंह ने भी यहीं से अरबी घोड़े, हाथी और हथियारों का संग्रह किया था। अब भी यह मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। देश-विदेश के लोग अब भी इसके आकर्षण से बच नहीं पाते हैं और यहां खिंचे चले आते हैं।
आवागमन का जरिया
हरिहरनाथ क्षेत्र में जाने के लिए हाजीपुर से वाहन उपलब्ध हैं। सोनपुर भी एक तेजी से विकसित होता शहर है। हरिहरनाथ मंदिर यहाँ के रेलवे स्टेशन से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिसके आस-पास श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए कई धर्मशाला मौजूद है । राजधानी पटना यहाँ से महज लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गंगा नदी पर बने महात्मा गाँधी सेतु और जे. पी. सेतु सोनपुर को पटना से जोड़ते हैं। अब तो रेलवे ( दीघा-सोनपुर रेल रोड) के द्वारा भी सोनपुर पटना से जुड़ गया है।