सोनपुर मेले की महिमा (Harihar kshetra Sonpur Mela)

मोक्षदायिनी गंगा और गंडक नदी के संगम और बिहार के सारण और वैशाली जिले के सीमा पर ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक महत्व वाले सोनपुर क्षेत्र में लगने वाला सोनपुर मेला बिहार के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है, प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने से प्रारंभ होकर एक महीने तक चलने वाले इस मेला का आयोजन इस बार दिनांक 6.11.22 से 7.12.2022 तक हैं। प्राचीनकाल से लगने वाले इस मेले का स्वरूप कालांतर में भले ही कुछ बदला हो, लेकिन इसकी महत्ता आज भी वही है, यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष लाखों देशी और विदेशी पर्यटक यहां पहुंचते है।

“हरिहर क्षेत्र मेला” “छततर मेला” के नाम से भी जाना जाने वाला सोनपुर मेले की शुरूआत कब से हुई इसकी कोई निश्चित जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, परंतु यह उत्तर वैदिक काल से माना जाता है, महापंडित राहुल सांस्कृत्यान ने इसे शुंगकाल का माना है, शुंगकालीन कई पत्थर व अन्य अवशेष सोनपुर के कई मठ मंदिरों में उपलब्ध है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थल “गजेंद्र मोक्ष स्थल” के रूप में भी चर्चित है।

भारत में दो या दो से अधिक नदियों के मिलने वाले स्थल को संगम कहा जाता है। संस्कृत के इस अति विशेष शब्द के साथ कई परंपराओं का उद्गम भी जुड़ा हुआ है। जहाँ दो नदियाँ मिलकर इस संगम को परिभाषित करती है, वहीं दूसरी तरफ दोनों नदियाँ जिन-जिन संस्कृतियों को छूती हुई आती है, उनकी विशिष्टताओं का भी मेल यहाँ होता है। इसी कारण भारत देश के इन संगम स्थलों के पास कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान, आयोजन व सामूहिक स्नान की परंपरा है, जो कई विभेदों को खुद में समा लेती है। ऐसी ही जीती-जागती परंपरा का एक सबसे सशक्त उदाहरण है, सोनपुर मेला ।

इस मेले की विशिष्टता ने पूरी दुनिया में बिहार को खास पहचान दिलायी है। इसका कारण पीछे जुड़ा पौराणिक धार्मिक इतिहास है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान करने के लिए यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ एक दिन पूर्व से ही जमा होने लगती है। सुबह की पहली किरण के साथ ही बड़ी संख्या में लोगों के गंगा और गंडक के संगम स्थल पर बनें घाटों में स्नान करने का सिलसिला शुरू हो जाता है। लोग पवित्र स्नान करने के बाद धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ शुरू करते हैं। यहाँ आने वाला हर व्यक्ति पुण्य प्राप्त करने के लिए पवित्र स्नान करने में विश्वास रखता है। इस स्नान के बाद ही लोग मेले की रौनक देखने के लिए निकलते हैं।

आस-पास के लोगों की रोजमर्रा की जीवन शैली में यह मेला सिर्फ उत्सवी माहौल ही लेकर नही आता है, बल्कि धर्म और आध्यात्म को भी अपने में समाहित करने के लिए आता है।