बिहार में स्थित है माता दुर्गा के दिव्य और अलौकिक शक्तिपीठ !
हिन्दू धर्म के अनुसार जहां सती देवी के शरीर के अंग गिरे, वहां वहां शक्ति पीठ बन गईं। बिहार में 10 ऐसे जगह मौजूद हैं जिसे शक्तिपीठ माना जाता हैं।
1. बड़ी पटनदेवी
राजधानी पटना में स्थित बड़ी पटनदेवी एक प्रमुख शक्तिपीठ है। बताया जाता है कि सती के शरीर की दाहिनी जंघा महराजगंज में गिरी थी और उत्खनन में मिली महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की तीन प्रतिमाएं यहीं रखी गई हैं। यहां भैरव और शक्तिदेवी सर्वानंदकारी की भी पूजा की जाती है। बड़ी पटनदेवी इस स्थान को दिया गया नाम है। पटनदेवी की सभी प्रतिमाएं काले पत्थर से निर्मित हैं।
2. छोटी पटनदेवी
छोटी पटनदेवी मंदिर बड़ी पटनदेवी से तीन किलोमीटर दूर हाजीगंज क्षेत्र में है। यह भी एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती का पट और वस्त्र यहीं गिरे थे। जहां वस्त्र गिरा था, वहां एक मंदिर बनाया गया और महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती की मूर्तियां स्थापित की गईं। मंदिर परिसर के पश्चिमी बरामदे के कुएं को ढक दिया गया है और उसे वेदी में बदल दिया गया है।
3. शीतला मंदिर
बिहारशरीफ से पश्चिम एकंगरसराय मार्ग पर मघरा गांव में पुराना शीतला मंदिर एक उल्लेखनीय शक्तिपीठ है। बताया जाता है कि यहां सती के हाथ का कंगन गिरा था। माना जाता है कि शीतला मंदिर में जल चढ़ाने से कई बीमारियों का दूर हो जाती है । मंदिर के पश्चिम दिशा में एक प्राचीन कुआँ है, इसी कुएं में मां शीतला की प्रतिमा मिली थी।
4. माँ मंगला गौरी मंदिर
गया-बोधगया मार्ग पर भस्मकुट पर्वत के ऊपर मां मंगला गौरी मंदिर एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। कहा जाता है कि यहां देवी सती का स्तन गिरा था। मंदिर की ऊंचाई अधिक होने के कारण चट्टानी क्षेत्र को सीढ़ी की तरह बनाया गया है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 115 सीढ़ियां हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार काफी छोटा है। मंदिर में प्रवेश करने के लिए झुक कर प्रवेश करना पड़ता है।
यहां महालक्ष्मी देवी का स्वरूप हैं। इस पीठ को साधुओं द्वारा ‘पालनपीठ’ के नाम से जाना जाता है। 1350 ई. में माधवगिरि दंडी स्वामी द्वारा निर्मित अखंड ज्योति इसके गर्भगृह में जलती रहती है। मनुष्य अपने जीवनकाल में इस शक्तिपीठ पर अपना श्राद्ध कर्म करा सकता है। इस मंदिर परिसर में विभिन्न देवताओं की मूर्तियाँ हैं।
5. चामुंडा मंदिर
नवादा-रोह-कौआकोल मार्ग पर रूपौ गांव में स्थित चामुंडा मंदिर एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। कहा जाता है कि देवी सती का सिर कट कर गिरा था। इस मंदिर में देवी चामुंडा की एक पुरानी मूर्ति है। हर मंगलवार को यहां भारी भीड़ उमड़ती है। यहां पूजा करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। चामुंडा मंदिर से पश्चिम-दक्षिण एक प्राचीन गढ़ पर स्थित शिव मंदिर में प्राचीन शिवलिंग स्थापित है।
मार्कंडेय पुराण के अनुसार चण्ड-मुण्ड के वध के बाद देवी दुर्गा ही चामुंडा कहलाईं।
6.माँ ताराचंडी
सासाराम से 6 किलोमीटर दूर कैमूर पहाड़ी की गुफा में ताराचंडी मां का मंदिर है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से है। परशुराम ने भगौती नाम की एक छोटी लड़की का रूप धारण किया और राजा सहस्त्रबाबू पर विजय प्राप्त की। इसी बालिका से माता का नाम ताराचंडी देवी पड़ा।
ताराचंडी के अलावा यहां मुंडेश्वरी मां की काले रंग की मूर्ति और कई अन्य देवी-देवताओं की भी मूर्तियां हैं। इस मंदिर के पास चार झरने हैं जिन्हें सीता कुंड और माझरमुंड के नाम से जाना जाता है।
7. माँ चंडिका देवी मंदिर
मुंगेर जिले में गंगा तट पर स्थित मां चंडिका देवी का मंदिर भी एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यहां माता सती की दाहिनी आंख गिरी थी। मुख्य मंदिर में सोने से बनी एक आँख स्थापित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस तीर्थ के निर्माण का उल्लेख सतयुग में मिलता है। बताया जाता है कि लंका पर अपनी विजय के बाद राम ने यहां देवी की पूजा की थी।
8. उग्रतारा शक्तिपीठ
उग्रतारा शक्तिपीठ सहरसा से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां देवी सती की बायीं आँख गिरी थी। महर्षि वशिष्ठ ने यहां चिनाचार विधि से देवी की कठोर उपासना की थी। मंदिर में स्थापित भव्य बौद्ध तारा की मूर्ति पाल कालीन है। मधुबनी के राजा नरेंद्र सिंह देवी की पत्नी रानी पद्मावती ने लगभग 500 साल पहले इस मंदिर का निर्माण कराया था।
मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर है, जबकि छोटा द्वार पूर्व की ओर है। इस स्थल पर उत्खनन के दौरान भगवान बुद्ध की एक प्रतिमा भी मिली थी और वर्तमान में यह पटना संग्रहालय में स्थित है।
9. अंबिका भवानी
अंबिका भवानी मंदिर एक प्राचीन धार्मिक स्थल है जो छपरा-पटना प्रमुख मार्ग पर आमी के पास स्थित है। भारत में एक ऐसा मंदिर है जिसमें कोई मूर्ति नहीं है। इसे देवी सती के जन्मस्थान और अंतिम विश्राम स्थल के रूप में जाना जाता है। ऐसा दावा किया जाता है कि देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने यहां शासन किया था। जब भगवान विष्णु ने देवी सती के अंगों को चक्र से अलग कर दिया, तो जिस स्थान पर उनके अंग गिरे वह स्थान शक्तिपीठ बन गया, लेकिन मां सती का शरीर भस्म को कर यहीं रह गया था।
यहां एक प्राचीन कुआं भी है। इस कुएं से कई प्राचीन मूर्तियां, एक बड़े आकार की मूर्ति और एक दक्षिण्मुखी शंख भी मिला था जिस पर देवी लक्ष्मी की मूर्ति बनी हुई थी। यहां हर वर्ष चैत मास में एक बड़ा मेला लगता है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार राजा सुरथ ने भगवती की पूजा यहीं की थी। राजा सुरथ ने दुर्गा सप्तशती के अनुसार यहीं पर भगवती की आराधना की थी।